Thursday, December 17, 2009

लालगढ़ की कहानी,मेरी ज़ुबानी

लालगढ़ में जो हुआ वो सब ने देखा.....नक्सलियों ने किस तरह आम लोगों का समर्थन लेकर सीपीएम के गढ़ मानेजाने वाले लालगढ़ पर कब्जा कर लिया.....इस दौरान नक्सलियों ने कईयों की जाने भी ली और भारी मात्रा में आगजनी की......लालगढ़ की पुलिस चौकी पर नक्सली कब्जे को शायद ही कोई भूल पाएगा.....यह सब वो दृश्य थे जिन्हें पूरे देश ने देखा.....लेकिन लालगढ़ के कुछ ऐसे अनछुए पहलु भी हैं जिन्हें शायद हम और आप कभी ना देख पाएं.....
10 दिसंबर, गुरुवार-अपने चचेरे भाई की आकस्‍मिक दुर्घटना में लगी चोट के चलते मुझे अपने घर डलहौजी जाना पड़ा था....आज मैं उन्हें अस्पताल में देखने के बाद पठानकोट रेलवे स्टेशन पहुंचा.......घर में अपनी मां से बात करते करते जम्मू से दिल्ली की और चलने वाली ट्रेन पूजा एक्सप्रेस स्टेशन पर पहुंच गई........ट्रेन की एसी-3 कोच में चढ़ कर अपनी 13 नम्बर की सीट पर पहुंचा.....सीट पर पहले से ही दो युवा लड़के बैठे हुए थे......समान रखकर मैं भी सीट पर बैठ गया....मेरी सिट पर बैठे वह दोनों लड़के आपस में बात कर रहे थे.....उनकी बातों से मुझे अंदाजा हो गया था की यह दोनों सेना के जवान ही होगें.....तभी उस एक लड़के की फोन की घंटी बजी.....घंटी बजते ही मानों उसके दिल की धडकनें रुक गई हों.....घर से बीवी का फोन आया था......शायद फोन आते ही उस जवान को वो मंजर याद आ गया जब वह अपने घर से सिने पर पत्थर रखकर निकला था....अपने मां के आंसूओं ने शायद उसे बहुत रोका होगा.....लेकिन न चाहते हुए भी उसे उस सफर पर निकलना पड़ा जहां जाने के बाद उसे खुद पता नहीं कि वो वापिस आएगा भी या नहीं....बहरहाल गाड़ी आगे बढ़ रही थी और मंजिल और करीब आ रही थी....दोनों जवानों ने अपने बेग से खाना निकाला और खाने लगे....खाना एक जवान की बीवी ने बनाया था.....दोनों को खाना खाते देख मैंने भी बैग से खाना निकाला और खाने लगा....उसी दौरान मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ ही लिया कि आप क्या करते हैं?.....उन्होंने बताया की वो सीआरपीएफ में काम करते हैं और लालगढ़ में तैनात हैं.....लालगढ़ का नाम सुनते ही मेरे सामने वो सारी तस्वीरें एक बार फिर से आ गई जिन्हें कभी मैने अपने चैनल पर चलाया था और उन्हें जिया भी था........मुझे वो तस्वीर साफ दिखने लगी जिसमें औरतों ने मानव श्रंखला बनाकर नक्सलियों को सुरक्षा दी थी.....यह कुछ ऐसी तस्वीरें थी जिन्हें शायद ही मैं कभी भूल पांऊ.......लेकिन आश्चर्य की बात यह थी की मेरी उन तस्वीरों में एक भी जवान की तस्वीर नहीं थी जो उस समय वहां बैठकर अपनी जान पर खेल कर नक्सलियों से मुकाबला कर रहे थे.......
आज वो जवान मेरे साथ थे जिन्होंने नक्सलियों के साथ हुए लालगढ़ के संघर्ष को जिया था......धीरे-धीरे करते हमारी बात शुरू हुई....एक जवान ने मुझे बताया की जिस समय लालगढ़ में हिंसा हुई वो वहीं मौजूद था......पिछले एक साल से वह अपनी कंपनी के साथ वहां तैनात हैं.....उसे यह भी पता नहीं की पिछला एक साल कैसे गुजर गया.......इस पूरे एक साल में उसने क्या खाया और कितनी बार सोया उसे खुद पता नहीं.......हंसते हुए मुझसे बात करते हुए वह बोला की जब घर में एक हफ्ता रहने के बाद अपना चहरा शिशे में देखता हुं तो अच्छा लगता है.....कहा भाईसाहब आप यकिन नही करेंगे जब डयूटी पर होते हैं तो ये आंखे बाहर निकल आती हैं....चेहरा ऐसा लगता है मानो पिछले कई सालों से धोया ना हो.....कई बार ऐसा भी हुआ है की खाना खाने बैठे और घंटी बज गई....और बोला गया की आपको अभी आगे बढ़ना है.......कुछ समझदार जवान तो जेब में चना लेकर या कुछ और लेकर चलते हैं वो तो अपना पेट में कुछ डाल लेते हैं लेकिन बाकी जवानों को पानी से ही काम चलाना पड़ता है......यह सुनाते सुनाते जब जवान ने मुझे खाना खाते देखा तो उसकी आंखे भर आई.....कहा की पिछली बार मैं घर से खाना लाया था पर रास्ते में ही फैंक दिया.......सोचा जब खाना खाऊंगा तो घर वालों की याद आएगी और दिल का दर्द और भी ज्यादा बढ़ जाएगा........इस जवान की बात सुनकर मेरा पेट भी भर गया और मैं अपना पूरा खाना भी नही खा पाया.....
इसके बाद बात शुरू हुई लालगढ़ के संग्राम की.....उस जवान ने मुझे बताया की लालगढ़ का संग्राम कई माईनो में दूसरी लड़ाईयों से अलग है....सबसे बड़ी बात यह लड़ाई हमें अपने घर में ही लड़नी पड़ती है....इस लड़ाई में हमारे ऑफसर हमें पहले ही उन बातों के बारे में बता देते हैं जो हमें नही करनी होती हैं......मसलन नक्सली अगर आपके सामने 9 गज की दूरी पर बंदूक लेकर भी खड़ा है तो आप उस पर गोली नहीं चला सकते.....अगर आप पर कोई पत्थर फैंकता है या तीर से वार करता है या फिर डंडे से वार करता है आप उस पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकते चाहे फिर आप इस में जख्मी भी क्यों ना हो जाए......आपको यह सख्त निर्देश हैं की आप पहले किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकते.....लालगढ़ में पुलिस थाने में हुए कब्जे के दौरान भी ऐसा हुआ....नक्सलियों ने आम लोगों के साथ मिल कर पुलिस थाने और पास के घरों में धाबा बोल दिया और लोगों के घरों में आग लगा दी....लेकिन हम उनपर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं कर पाए......
गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और मैं बहुत कुछ उनसे जानना चाहता था.....मैने उनसे पूछा की क्या कभी कोई ऐसा वाकिया हुआ जब उनके सामने मौत खड़ी हो और उनकी आखिरी घड़ी नज़दीक आ गई हो......इस पर उस जवान ने मुझे कहा की हमें डयूटी जोईन करने से पहले ये कहा जाता है की हम कुछ बातों को सब को नहीं बता सकते....अपने घरवालों को भी नहीं.....लेकिन मैंने उनसे फिर सवाल किया की क्या कभी अपने मौत को सामने देखा है.......उन्होंने मुझे हंसते हुए बोला की क्या कभी आपने गोली की खुशबु को महसूस किया है....गोली की खुशबु तब महसूस होती है जब किसी ने आप को टारगेट पर रखा हो और गोली आपको छू कर निकल जाए.......उस समय आप गोली की खुशबू को महसूस कर सकते है.....उस पहली गोली की आवाज को सुनने में भी बड़ा अच्छा लगता है....लेकिन असल में वो गोली आप को मारने के लिए चलाई गई होती है.....और ऐसी कितनी ही गोलियों को उन्होंने अपने पास से गुजरते हुए देखा है जिनपे उनकी मौत नही लिखी हुई थी.......
जैसे जैसे हमारी बात आगे बड़ी कुछ और बातें समाने निकल कर आई......मुझे उस जवान ने बताया की किस तरह नक्सलियों ने एलजेपी के नेता राम विलास पासवान को अपना शिकार बनाने की नाकाम कोशिश की......जवान ने बताया जिस दिन नक्सलियों ने पासवान पर हमला किया उस दिन उनकी टीम को ही रास्ते की पैट्रोलिंग करने का आदेश दिया गया था....स्‍थानीय एसपी ने उन्हें 15 किलोमीटर के कच्चे रास्ते की पैट्रोलिंग करने के निर्देश दिए थे......जब हम लोगों ने रास्ते की पूरी पैट्रोलिंग कर ली और वापिस लौटने लगे तो अचानक एक धमाके की अवाज़ सुनाई दी.......थोड़ी देर बाद खबर लगी की नक्सलियों ने लैंडमाईन बिछा कर पासवान के काफीले को निशाना बनाने की कोशीश की है.....बाद में पता लगा की पासवान तो हमले में बच गए लेकिन उनको एसकोट कर रही एक पाईलेट गाड़ी उस धमाके में क्षतिग्रस्त हो गई....दरअसल नक्‍सलियों ने इस बार लैंडमाईन कच्चे रास्ते की बजाए पक्के रास्ते पर लगाई थी जिसके चलते यह हादसा हुआ.....जवान ने मुझे बताया की नक्सली जो लैंड माईन लगाते है उसमें किताना बारुद भरना होता है इसकी उन्हें ज्यादा जानकारी नही होती...इसलिए कभी कभी वो बहुत ज्यादा बरुद भी डाल देते है जिससे कई बार एक ही ब्लास्ट में कई लोगों की मौत हो जाती है......इसके अलावा उस जवान ने मुझे उस हमले के बारे में भी बताया जिसमें नक्सलियों ने राजधानी एक्सप्रेस को अपने कब्जा में ले लिया था....इस बार भी इन्हीं की टीम थी जो सबसे पहले मौके पर पहुंची थी और नक्सलियों से ट्रेन के कब्जे को छुड़वाया था......हम लोगों के लिए शायद यह दोनों बड़े हादसे थे क्योंकि हमने इन्हें टीवी पर देखा था....लेकिन इन जवानों के लिए यह वो दिन थे जिन्हें ये हर रोज़ जिते है.....आज घर से जाते हुए कहीं ना कहीं इन्हें वो मंजर साफ नजर आ रहे थे.....बातचीत के दौरान कई बार उन्होंने कहा की वह नौकरी छोड़ देना चाहते हैं लकिन क्या करें दूसरा कोई रास्ता भी नही है......कहीं ना कहीं उनकी असमर्थता मुझे साफ नजर आ रही थी....इस बातचीत के दौरान कई बार मैने खुद को उनकी जगह पर महसूस किया......कई बार सोचा की क्या मेरे में इतनी ताकत है की मै लालगढ़ जैसी जगह पर जांऊ और जिस तरह की जिंदगी यह जी रहे है मै भी जियूं.....लेकिन दिल से सिरफ एक ही अवाज आई की शायद मेरा दिल इनकी तरह इतना विशाल नही है की मैं इन विषम परिस्तिथियों का सामना कर सकूं....आज इन जवानों की बहादूरी की बदौलत ही हम अपने घरों में सकून की जिंदगी जी पा रहे हैं....यह जवान ही है जो हमें सोने देने के लिए कई कई रातें जागते हैं....इसलिए हमें ना केवल मुसीबत में बल्कि हर एक उस पल में इन जवानों को याद रखना चाहिए जो जान को हथेली में रख कर हमारी और आपकी सुरक्षा कर रहे है.........

1 comment:

  1. जनाब ! पहले बधाई स्वीकार हो... ब्लॉग परिवार में डुबकी लगाने के लिए, दूसरी बात पुण्य परसून जी नक्सल के जबरदस्त जानकार माने जाते हैं और हैं भी, लगता है टक्कर देने वाला आ गया है कोई.....खैर मेरी और से ढेर सारी शुभ कामनाओं के साथ बेस्ट ऑफ़ लक अंग्रजी में,....मेरा मानना है की पत्रकार को कुछ न कुछ लिखते रहना चाहिए ..और ये उसका हक़ भी है...आशा है अच्छे ब्लॉग पढने को मिलेंगे....
    आपका अपना मनोजीत सिंह

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